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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।

उत्तर -

मैथिल कोकिल विद्यापति का जन्म 1360 ई. के लगभग मिथिला के एक सुशिक्षित, धनाढ्य एवं सम्पन्न परिवार में हुआ था। वैसे विद्यापति का आविर्भाव काल विवादास्पद है। कुछ विद्वान् सन् 1350, कुछ विद्वान् सन् 1357, कुछ विद्वान् सन् 1370 तथा कुछ विद्वान् उनका आविर्भाव काल सन् 1372 मानते हैं। उनके पूर्वज अपनी विद्वता के बल पर बड़े-बड़े राजपदों पर प्रतिष्ठित हो चुके थे। उनके जनक गणपति ठाकुर उच्चकोटि के विद्वान् और राज्य मंत्री थे। इससे विद्यापति को प्राचीन साहित्य एवं भाषाओं के अध्ययन की पूर्ण सुविधा प्राप्त हुई। प्रतिभा इनको विरासत में मिली थी तथा अध्ययन करने की प्रवृत्ति का विकास इनके पारिवारिक परिवेश का परिणाम था। कुल परम्परा एवं प्रतिभा के बल पर उन्हें क्रमशः कीर्ति सिंह, देव सिंह, भाव सिंह जैसे उदार नरेशों का आश्रय प्राप्त हुआ। राजा शिव सिंह ने तो विद्यापति को अत्यधिक सम्मान प्रदान कर उन्हे एक गांव भी दान में दे दिया था। विद्यापति का स्वर्गवास डॉ. जयकान्त मिश्र ने 1448 ई. में माना है।

रचनाएं - विद्यापति की रचनाओं को भाषा की दृष्टि से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

(1) संस्कृत में रचित,
(2) अवहट्ट में रचित
(3) लोक भाषा में रचित।

संस्कृत में रचित -

(1) शैव सर्वस्व सार,
(2) गंगा वाक्यावली,
(3) दुर्गा भक्त तरंगिणी,
(4) भू-परिक्रमा,
(5) दान वाक्यावली,
(6) पुरुष, परीक्षा,
(7) विभाग-सार,
(8) गया पत्तलक वर्ण कृत्य,
(9) लिखनावली आदि रचनाएँ आती हैं।

दूसरे वर्ग में उनकी दो ऐतिहासिक गद्य पद्य मिश्रित रचनाएं कीर्तिलता और कीर्ति पताका आती है। 'कीर्तिलता' मं( महाराजकुमार वीर सिंह एवं कीर्ति सिंह के युद्ध एवं सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। जबकि कीर्ति पताका में राजा शिव सिंह एवं कुछ मुस्लिम आक्रमणकारियों के युद्ध क्रा वर्णन ओजपूर्ण शैली में हुआ है। तीसरे वर्ग में उनके गीतों का समग्र 'पदावली' आती है।

वस्तुतः रचनाओं की संख्या की दृष्टि से विद्यापति संस्कृत और अवहट्ट के साहित्यकार कहे जा सकते हैं, किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहास में उन्हें उनकी हिन्दी रचना 'पदावली' के आधार पर ही स्थान दिया जाता है।

वैसे तो मैथिली में विभिन्न प्रकार की रचनाएँ लिखी गयी हैं, किन्तु उसका सबसे अधिक प्रमुख काव्य रूप गीति है। न केवल हिन्दी में अपितु इससे पूर्व संस्कृत एवं अपभ्रंश में भी गीति- परम्परा को प्रचलित करने का श्रेय मुख्यतः इसी प्रदेश के कवियों को है। सर्वप्रथम अपभ्रंश के सिद्ध कवियों ने जिनमें से अनेक का आविर्भाव इसी प्रदेश में गीतियों के माध्यम से अपनी अनुभूतियों का प्रकाशन किया। सम्भवतः सिद्धों की गीति शैली का स्रोत जन साधारण के लोकगीत थे। आगे चलकर जयदेव ने अपनी संस्कृत रचना 'गीत-गोविन्द में गीति शैली का प्रयोग करके उसे नया वैभव प्रदान किया। जयदेव को ही परम्परा में मिथिला में विद्यापति का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने मैथिली भाषा में गीति-काव्य की एक सुदृढ़ एवं दीर्घ परम्परा स्थापित की। इस प्रकार मैथिली प्रदेश अपभ्रंश संस्कृत एवं मैथिली (हिन्दी) तीनों भाषाओं के गीति काव्य का जन्मस्थान रहा।

स्वच्छन्द प्रेम का निरूपण - प्रेम के क्षेत्र में विद्यापति पूर्णतः स्वच्छन्द या रोमांटिक कवि के रूप में दिखाई पड़ते हैं। उनका प्रेम समाज की मर्यादाओं को स्वीकार करता हुआ आगे नहीं बढ़ता, अपितु वह कुल की प्रतिष्ठा, परिजनों के भय, समाज के बन्धनों एवं धर्म के नियमों को ठुकराता हुआ

निर्बाध रूप में अग्रसर होता है। उनकी सौन्दर्य भावना एवं रसिकता इतनी अधिक बढ़ी हुई है कि वे नारी के अंग-विशेषों का वर्णन करते समय उन्हें कई बार अपने इष्ट देव शिव से भी बढ़कर घोषित कर देते हैं

चन्द्र चरच् पयोधर रे, ग्रिम गज मुकुता हार।
भसम भरल जनि शंकर रे, सिर सुरसरि जलधार।
X                                X                             X
कुच भय कमल - कोरक जल मुदि रहु,
घट परवेस हुतासे।
दाड़िम सिरिफल गगन वास करु,
शम्भु गरल कठ ग्रासे।

स्वच्छन्द प्रेम की उत्पत्ति प्रायः प्रथम दर्शन से होती है। विद्यापति के नायक और नायिका प्रथम दर्शन से ही प्रेम वेदना से पीड़ित हो जाते हैं। एक ओर नायक कृष्ण कहते हैं -

"पथ गति पेरपल मो राधा।
तरवनुक भाव परान भए पीड़ित रहलकुमुद निदि साधा ॥'

तो दूसरी ओर नायिका भी साँवरे सुन्दर को राह में देखकर ही उसमें अनुरक्त हो जाती है -

सामर सुन्दर ए बाट् आएल,
तो मोरि लागलि आँखि।

स्वच्छन्द प्रेम या रोमांस के लिए अपेक्षित एक अन्य तत्त्व साहस का भी प्रयोग विद्यापति की परेम-भावन में दृष्टिगोचर होता है किन्तु उसका आश्रय नायिकाएँ हैं नायक नहीं। नायक तो विलास के रस में भौरों की तरह निरन्तर डूबे रहते हैं। नायिकाएँ समस्त बिघ्नों एवं संकटों का सामना करती हुई संकेत स्थलों पर पहुँचती हैं। एक उदाहरण देखिए

तपन के ताप तपत भेल महीतल,
तातल बाबू दहन समाना,
चढ़ल मनोरथ भामिनी चलु पत
ताप तपत नहीं जाना।

किन्तु विद्यापति की नायिकाओं का यह स्वच्छन्द प्रेम अन्त में असफल हो जाता है और निराशा तथा शोक की अनुभूति में परिणित हो जाता है। नायिकाओं के रूप रस के लोभी नायकों की ठगी ही इस असफलता का मूल कारण सिद्ध होती है। प्रणय- वंचिता - नायिकाओं की बेबसी एवं पश्चाताप का चित्रण मार्मिक शब्दों में किया गया हैं.

झापल कूप देखहि नाहि पारल, आरति चललहु धाई।
तरवन लघु गुरु किछु नहिं गूनल, अब पछताबक जाई।

           X                    X                    X

चन्दन भसम सिमर आलिंगन, सालि रहल हिय काँट।

वस्तुतः विद्यापति ने स्वच्छन्द प्रणय की यह परिणति अत्यन्त सहज स्वाभाविक रूप में सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल दिखाई है जिसका अनुमोदन आधुनिक मनोविज्ञान भी करता है। विद्यापति के काल में, जहाँ प्रेम के क्षेत्र में अनेक व्यवधान थे, यह स्वच्छन्द प्रेम सफल दाम्पत्य में परिणत नहीं हो सकता था, अतः उसकी परिणति निर्वेद में सम्भव थी। यद्यपि अनुरक्ति एवं विरक्ति दो सर्वथा विरोधी मनः स्थितियाँ हैं किन्तु यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि परिस्थितियों की प्रतिक्रिया से एक ही परिणति दूसरी में सम्भव है।

स्वच्छन्द प्रेम के अलावा दाम्पत्य का भी चित्रण गौण रूप में हुआ है, जिसमें प्रथम समागम से लेकर पति के परदेश गमन तक के प्रसंगों का चित्रण अनुभूतिपूर्ण शब्दों में हुआ है। यहाँ नायिका प्रेयसी न होकर पत्नी है, अतः उसके हृदय में प्रणय की वैसी स्वच्छन्दता, व्यापकता एवं गम्भीरता नहीं आ पाती जैसी कि अनेक संघर्षों का सामना करके प्रणय-पथ पर अग्रसर होने वाली प्रेयसी में मिलती है। उसमें भावनाओं की सूक्ष्मता की अपेक्षा वासना की स्थूल प्रेरणा की प्रमुखता दिखाई पडती है -

अंकुर तपन ताप जति जारब
कि करब बारिद मेहे।
इह नव जोवम विरह गमाओब
कि करब से पिया गेहे।

प्रौढा नायिकाएँ ऐसा नहीं सोचती। उनमें यौवन की चंचलता एवं वासना के वेग के स्थान पर प्रणय की ही आकांक्षा अधिक मिलती है। उन्हें अपने यौवन के व्यर्थ बीत जाने की अपेक्षा परदेशवासी पति के स्नेह में कमी आ जाने की चिन्ता अधिक है -

सबकर पहु परदेस बसि सजनी,
आएल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी,
नहिं मन बाढ़ए नेह।

इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यापति ने स्वच्छन्द प्रणय और दाम्पत्य भाव दोनों का ही विकास सहज स्वाभाविक रूप में दिखाया है।

काव्य रूप एवं शैली की दृष्टि से भी विद्यापति सकल कवि हैं। उन्होंने एक ओर जहाँ सौन्दर्य, प्रेम और विरह की सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को अपने काव्य का विषय बनाया है, वहीं दूसरी ओर उन्हीं के अनुरूप गीति शैली को चुनकर अपना काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है। सफल गीति के लिए अपेक्षित भावात्मक, वैयक्तिकता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, कोमलता आदि सभी गुण उनके पदों में विद्यमान है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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